Shani Amavasya: आप जानते हैं कहां है सबसे पुराना शनि मंदिर? क्या यहीं से गई थी शनि शिंगणापुर की शिला?

Shani Amavasya: आप जानते हैं कहां है सबसे पुराना शनि मंदिर? क्या यहीं से गई थी शनि शिंगणापुर की शिला?


रिपोर्ट : आकाश गौर

मुरैना. 21 जनवरी को कई संयोग एक साथ बन रहे हैं. साल की पहली शनिचरी अमावस्या (Shani Amavasya 2023) के साथ आज ही मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya) भी है. आज शनिवार सुबह 6 बजकर 16 मिनट से 22 जनवरी की सुबह 2 बजकर 21 मिनट तक शनि अमावस्या रहेगी. इस दिन शनि भगवान की पूजा का विशेष महत्व है. मुरैना जिले में यह अधिक महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यहां सबसे प्राचीन कहा जाने वाला शनि मंदिर (Oldest Shani Mandir) है. आज यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ सुबह से उमड़ती नजर आ रही है. क्या आप जानते हैं कि इस मंदिर में कितनी खास बातें हैं?

ज्योतिषियों की मानें तो शनिचरा पहाड़ी (Shanichara Hills) पर स्थित मंदिर में शनिदेव की मूर्ति आसमान से टूटकर गिरे उल्का पिण्ड से निर्मित हुई. शनिदेव से जुड़ी एक रोचक पौराणिक कथा के अनुसार लंका दहन के लिए शनिदेव ने बताया था जब तक वह लंका में रहेंगे तब तक दहन नहीं होगी. वह इतने दुर्बल हैं कि चलकर लंका से बाहर खुद जा नहीं सकते. तब हनुमान जी ने अपनी बुद्धि से शनिदेव को लंकापति रावण के पैरों के नीचे से मुक्त कराया था. कहते हैं हनुमान ने शनिदेव को पूरी ताकत से भारत भूमि की ओर फेंका था, तब वह मुरैना जिले के ऐंती ग्राम के पास पर्वत पर जा गिरे इसलिए इसे शनि पर्वत कहा जाता है.

यहीं से ले जाई गई शनि शिंगणापुर की शिला!

शास्त्रों की मानें तो शनि पर्वत पर शनिदेव ने घोर तपस्या कर बल प्राप्त किया. मान्यता है शनिदेव की मूर्ति और उनके सामने हनुमान प्रतिमा की स्थापना चक्रवर्ती महाराज विक्रमादित्य ने की थी. मंदिर में लगे एक शिलालेख के अनुसार 1808 ई. में तत्कालीन शासक दौलतराव सिंधिया ने यहां जागीर लगाई थी. शनि पर्वत (शनिश्चरा पहाड़ी) निर्जन वन में होने से विशेष प्रभावशाली है. यह भी कहा जाता है कि शनि शिंगणापुर (महाराष्ट्र) में स्थापित शिला इसी शनिश्चरा पहाड़ी से ही ले जाई गई थी.

शनि मंदिर के पास ही पौड़ी वाले हनुमान जी की जमीन पर लेटी हुई व उभरी हुई प्रतिमा है. यह पूरी पहाड़ी और इसके आसपास के क्षेत्र को सिद्ध क्षेत्र माना जाता है. कई भक्तों ने ऐसे अनुभव होने के दावे किए हैं. शनि मंदिर में पहाड़ी से अनवरत गुप्त गंगा की धारा निकलने और यहां की गुफाओं में संतों के तपस्या करने के दावे भी किए जाते रहे.

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