MP News: कुंडलपुर में पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं ‘बड़े बाबा’, जानें प्रकटन की दिलचस्प कहानी…

MP News: कुंडलपुर में पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं ‘बड़े बाबा’, जानें प्रकटन की दिलचस्प कहानी…


रिपोर्ट- अर्पित बड़कुल

दमोह. मध्य प्रदेश के दमोह जिले में शहर से 35 किलोमीटर की दूरी पर कुंडलगिरी सिद्ध क्षेत्र स्थित है, जो 2500 साल पुराना बताया जाता है. कुंडलपुर सिद्ध क्षेत्र अंतिम श्रुत केवली श्रीधर की मोक्ष स्थली है, यहां 1500 वर्ष पुराने पद्मासन में श्री 1008 आदिनाथ भगवान की प्रतिमा विराजित है. इन्हें जैन श्रद्धालु बड़े बाबा कहते हैं.

आदिनाथ भगवान महावीर के 500 शिष्य हुए, जिनमें इंद्रभूति गौतम के भट्टारक ने भ्रमण किया था. कुण्डलपुर भारत में जैन धर्म के लिए एक ऐतिहासिक तीर्थ स्थल है. कुण्डलपुर में बैठे (पद्मासन) आसन में बड़े बाबा (आदिनाथ) की प्राचीन अतिशयकारी प्रतिमा है. इस प्राचीन स्थान को कुण्डलगिरी सिद्धक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है. यहां 8वीं-9वीं शताब्दी के अति आलौकिक 63 मंदिर स्थापित हैं. बड़े बाबा आदिनाथ भगवान की अतिशयकारी प्रतिमा जिस पर्वत पर विराजमान है उसकी आकृति कुंडलाकार है जिस कारण इसका नाम कुंडलपुर नगर पड़ गया.

भूकंप निरोधक तकनीक से बना है मंदिर

मंदिर के पुजारी ने बताया किबड़े बाबा बहुत ही अतिशयकारी हैं, जो लोग इनके चरणों मे नतमस्तक होते हैं उनकी मन की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं. यहां बड़ी संख्या में जैन श्रद्धालुओं के साथ पर्यटक भी आते हैं. कुंडलपुर के छोटे बाबा आचार्य भगवान विधासागर जी महाराज के चरण कुंडलपुर की पावन धरा पर सन्न 1976 में पड़े थे. जिसके बाद बड़े बाबा और छोटे बाबा का मिलन हो गया. छोटे बाबा ने कुंडलपुर को ही अपनी तपोस्थली बनाई. वर्तमान में जिस स्थल पर मंदिर का निर्माण किया गया है वह भूकंप निरोधक तकनीक से बनाई गई है. बड़े बाबा का जिनालय दिगम्बर जैन समाज का ऐतिहासिक जिनालय है, जो समुद्रतल से 425 ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. दिगम्बर जैन समाज का गौरव है. कालांतर में विक्रम संवत 1757 ई को राजा क्षत्रसाल ने बड़े बाबा के मंदिर जी का निर्माण कराया और पंचकल्याणक कराया था.

ये है कहानी

श्रद्धालु बताते हैं कि किवदंती के अनुसार, पटेरा गांव में एक व्यापारी था, जो प्रतिदिन सामान बेचने के लिए पहाड़ी के दूसरी ओर जाता था. जहां रास्ते में उसे प्रतिदिन एक पत्थर पर ठोकर लगती थी. एक दिन उसने मन बनाया कि वह उस पत्थर को हटा देगा. लेकिन उसी रात उसे स्वप्न आया कि वह पत्थर नहीं तीर्थंकर मूर्ति है. स्वप्न में उससे मूर्ति की प्रतिष्ठा कराने के लिए कहा गया, लेकिन शर्त थी कि वह पीछे मुड़कर नहीं देखेगा. उसने दूसरे दिन वैसा ही किया. अपनी बैलगाड़ी पर मूर्ति को सरलता से रखा जैसे-जैसे बैलगाड़ी आगे बढ़ती जा रही थी वैसे-वैसे ही जोरों से संगीत और वाद्यध्वनियां सुनाई देनी लगीं. जिस पर उत्साहित होकर व्यापारी ने पीछे मुड़कर देख लिया और मूर्ति वहीं स्थापित हो गई.

श्री बड़े बाबा दिगंबर जैन मंदिर, कुंडलपुर सिद्ध क्षेत्र 077718 34880

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