Gwalior: 100 साल पुरानी काल कोठरियों में मौजूद है बेशकीमती किताबों का खजाना, कोर्ट रूम में छात्र करते हैं पढ़ाई
रिपोर्ट- विजय राठौड़
ग्वालियर. ग्वालियर शहर में एक स्थान ऐसा स्थान है जहां की कालकोठरी में 100 साल से भी अधिक पुरानी किताबों का बेशकीमती खजाना मौजूद है. इतना ही नहीं कोर्ट रूम में बैठकर छात्र-छात्राएं पढ़ाई करते हैं. आप भी इस तरह का अनुभव करना चाहते हैं तो आपको उसके लिए ग्वालियर की सेंट्रल लाइब्रेरी में पहुंचना होगा. क्योंकि यही वह स्थान है जहां 100 साल पहले ग्वालियर का न्यायालय लगता था. साथ ही कोर्ट के निचले हिस्से में सजायाफ्ता कैदियों को काल कोठरी में रखा जाता था. जिसके साक्ष्य आज भी मौजूद हैं और इन्हें देखने के लिए पर्यटक भी आते हैं.
पुस्तकालय का हो चुका है नवीनीकरण
पुस्तकालय के प्रबंधक विवेक सोनी ने बताया कि तकरीबन 100 साल पुराने इस पुस्तकालय का नवीनीकरण स्मार्ट सिटी द्वारा किया गया था. जिसके बाद यहां अति प्राचीन किताबों को संग्रह किया गया. साथ ही इन किताबों को स्कैनिंग कर अब इंटरनेट के माध्यम से छात्र-छात्राओं को उपलब्ध कराया जा रहा है.
पुस्तकालय में मौजूद है भारत भारतीय संविधान की मूल प्रति
लाइब्रेरी केप्रबंधक विवेक सोनी ने बताया कि संविधान की 16 मूल प्रतियां हैं. जिनमें से एक प्रति ग्वालियर के केंद्रीय पुस्तकालय में रखी हुई है. जो साल में तीन बार आमजन के लिए निकाली जाती है. इसकी प्रति को 31 मार्च 1956 को ग्वालियर लाया गया था. जिसमें कुल 231 पेज है. जिसमें संविधान कमेटी के लगभग सभी सदस्यों के हस्ताक्षर भी मौजूद हैं. यह पुस्तक पूरी तरह से हस्तलिखित है. आपको बता दें कुछ वर्ष पूर्व तक इस किताब को छूकर व इसके पन्नों को पलट कर देखा जा सकता था. लेकिन किन्हीं गतिविधियों के चलते अब इसे बड़ी स्क्रीन पर डिजिटल रूप में दिखाया जाता है.
आपके शहर से (ग्वालियर)
भूत और भविष्य का है अनूठा संगम
शहर का केंद्रीय पुस्तकालय भूतकाल और भविष्य का अनूठा संगम है. वर्तमान में जहां छात्र-छात्राएं पढ़ लिख कर अपना भविष्य बना रहे हैं.तो वही भूतकाल में इस भवन में लोगों को अपराधी साबित होने पर सजा दी जाती थी. इतना ही नहीं पुराने जमाने की उन यादों को आज भी या भवन अपने अंदर समेटे हुए हैं.प्रबंधक सोनी ने बताया कि यहां आने पर आपको आज भी तत्कालीन समय के कैदियों के जीवन का अनुभव जरूर होगा.आज जिन कालकोठरियों में किताबों को संग्रहित कर कर रखा गया है.वह स्थान आज भी सूरज की रोशनी से कोसों दूर है.आज भी यहां वह पत्थर के दरवाजे जो कोठरियों पर लगाए जाते थे मौजूद हैं.इतना ही नहीं आज भी यहां वे ताले मौजूद हैं जो तब लोगों को कैद में रखने के लिए दरवाजों पर लगाए जाते थे.कैदखाने की उन लोहे की सलाखों को आज भी आप छू कर महसूस कर सकते हैं.
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Tags: Gwalior news, Mp news
FIRST PUBLISHED : December 30, 2022, 17:24 IST
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