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खंडवा. मध्यप्रदेश के निमाड़ अंचल की समावेशी लोक संस्कृति, परंपरा की पहचान और आस्था के साक्षात दर्शन करना और समझना हो, तो एक बार संत सिंगाजी महाराज के समाधिस्थल पर जरूर जाइए. खंडवा से करीब 45 किलोमीटर दूर मूंदी से बीड़ के रास्ते पर मालवा-निमाड़ की लोक शैली में भजन-कीर्तन करते स्त्री-पुरुषों-बच्चों की टोलियां अगर आपको कहीं जाते दिखें, तो समझ लीजिए कि यह लोग सिंगाजी दरबार के दर्शन करने जा रहे हैं. सिंगाजी समाधिस्थल पर इन दिनों मेले जैसा माहौल है. भक्ति काल के कवि संत कबीरदासजी के समकालीन संत सिंगाजी ‘निमाड़ अंचल के कबीर’ कहलाते हैं. वह भी अपने जीवन काल में कबीर की तरह धार्मिक कर्मकांडों और पाखंडों के विरुद्ध पद लिखकर प्रहार करते रहे और सामाजिक एकजुटता का संदेश देते रहे.
इंदिरा सागर बांध बनने के बाद मध्य प्रदेश के हरसूद के सैकड़ों गांव जलमग्न हो गए थे. हजारों घर उजड़ गए थे. हजारों परिवार दूर-दराज में विस्थापित कर दिए गए. हरसूद के सिंगाजी गांव में संत सिंगाजी की समाधि थी. गांव तो डूब गया, लेकिन लोगों की आस्था को देखते हुए इंदिरा सागर बांध के बैक वाटर में तीन ओर से पानी से घिरे डूब क्षेत्र में एक मानव निर्मित सबसे ऊंचा टापू बनाया गया. फिर सिंगाजी महाराज के समाधि स्थल को उसके मूल स्थान से 40 मीटर ऊंचा उठा कर विशाल मंदिर निर्मित किया गया. यहां तक श्रद्धालु आराम से पहुंच सकें, इसके लिए करीब दो किलोमीटर लंबा पुल बनाया गया. इस पुल के दोनों ओर नर्मदा बहती है. नदी में दूर-दूर तक कई टापू भी दिखाई देते हैं, जो विकास के नाम किए प्रकृति, जीवन और संस्कृति के विनाश की याद दिलाते हैं.

मालवा-निमाड़ इलाके में आम लोगों के बीच संत सिंगाजी को लेकर अटूट आस्था है.
458 साल पुरानी है सिंगाजी महाराज की समाधि
हर साल शरद पूर्णिमा से लेकर 10 दिन तक संत सिंगाजी महाराज के समाधि स्थल पर मेला लगता है. 3 से 4 लाख लोग इस मेले में शामिल होते हैं, लेकिन यहां पूरे साल भर मेले जैसा माहौल रहता है. मध्यप्रदेश के खंडवा के अलावा बड़वानी, झाबुआ, देवास, इंदौर, उज्जैन, खरगोन, बैतूल आदि जिलों के गांव-गांव से श्रद्धालु सिंगाजी दरबार में पादुका पूजन और माथा टेकने पहुंचते हैं. महाराष्ट्र और राजस्थान से भी बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं.

संत सिंगाजी बड़वानी जिले में 1519 में जन्मे थे. वे संत कबीर की तरह लोक शैली में स्वरचित पद गाया करते थे.
माघ के दिनों में भी सिंगाजी समाधिस्थल पर मेला लगा हुआ है. पूजा-पाठ, प्रसाद, खान-पान, खिलौनों से सजी दुकानों की भरमार है. जगह-जगह लोग भंडारा करते, प्रसाद बांटते दिख जाएंगे. नीचे बह रही नर्मदा के घाट पर पूजा करते दिख जाएंगे. मंदिर में सिंगाजी के पादुका चिह्न हैं, यहां लगातार घी की अखंड ज्योत जलती है. परिसर में धूनी जलती रहती है. मंदिर में सिंगाजी महाराज के पद लिखे हुए हैं. मंदिर में एक पृथक स्तंभ भी है. मंदिर परिसर में ही संत सिंगाजी के परिजनों के भी चरण चिह्न हैं.
कौन थे ‘निमाड़ के कबीर’ सिंगाजी
निमाड़ के इतिहास की जानकारी रखने वालों के अनुसार संत सिंगाजी बड़वानी जिले के पिपलिया कस्बे के खजूरी नामक गांव में 1519 में जन्मे थे. पशुपालक परिवार में जन्मे सिंगाजी साक्षर नहीं थे, लेकिन संत कबीर की तरह निमाड़ी लोक शैली में स्वरचित पद गाया करते थे. आज भी मालवा और पश्चिम निमाड़ में उनके सैकड़ों पद आस्थापूर्वक भजन की तरह गाए और मंचित किए जाते हैं. मालवा-निमाड़ में उनके किस्से-कहानियां भरे पड़े है, जिनकी लोग अपने अंदाज में प्रस्तुतियां करते हैं.
-क्या कुएं का बैठना, फूटी ठीकर हाथ।
जा बैठा दरियाव में मोती बांधों गांठ ।।
-समझी लेओ रे मणा भोई…अंत नी होय कोई आपणा

शरद पूर्णिमा से लेकर 10 दिन तक संत सिंगाजी महाराज के समाधि स्थल पर मेला लगता है.
अटूट आस्था के केन्द्र
मालवा-निमाड़ के लोक समुदाय में संत सिंगाजी को लेकर अटूट आस्था है. हजारों की संख्या में ग्रामीण अपने घर-परिवार, कार्य सुख, शांति, समृद्धि की मनोकामनाएं लेकर संत सिंगाजी दरबार में माथा टेकने पहुंचते हैं और मन्नतें पूरी होने पर भंडारा लगाने या घी-हलुए, अन्न की प्रसादी अर्पित करने आते हैं. इलाके के लोग जब कोई वाहन खरीदते हैं, तो सिंगाजी दरबार में पूजन करने के बाद ही उसका इस्तेमाल करते हैं. इस संत को आस्थावान लोग चमत्कारी और उनके जीवन में खुशहाली लाने वाले संत के रूप में देवतुल्य पूजते हैं. कुछ लोग सिंगाजी को शृंगी ऋषि का अवतार मानते हैं.
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Tags: Art and Culture, Khandwa news
FIRST PUBLISHED : February 14, 2023, 18:29 IST
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