यहां सुपारी से बनती हैं मूर्तियां और खिलौने, इंदिरा गांधी भी थी इस कला की फैन

यहां सुपारी से बनती हैं मूर्तियां और खिलौने, इंदिरा गांधी भी थी इस कला की फैन


रिपोर्ट – आशुतोष तिवारी
रीवा. आपने पत्थर, संगमरमर, लकड़ी और धातुओं से बनी कई प्रकार की कलाकृतियों को देखा होगा, लेकिन क्या आपने कभी सुपारी से बनी कलाकृतियों को देखा है? क्या आपने सोचा है कि पान या जर्दे के साथ खाने वाली सुपारी की भी कलाकृतियां बनाई जा सकती हैं? सुपारी से बनी मूर्तियां और खिलौने इतने सुंदर कि देखते ही इन पर दिल आ जाए.

मध्यप्रदेश के रीवा में सुपारी की कलाकृतियों का विशेष महत्त्व हैं. यहां सुपारी के खिलौने बनाए जाते हैं और इन खिलौनों ने रीवा को लोकप्रियता दिलाई हैं. वैसे तो हर शहर की एक पहचान होती है, और यह पहचान वहां के लोगों से होती हैं, परम्पराओं से होती हैं, प्राचीन धरोहरों से होती हैं, लेकिन बात अगर रीवा की हो तो, कहने सुनने के लिए यहां बहुत कुछ मशहूर है, लेकिन सुपारी के खिलौने की बात ही अलग है.

सुपारी के खिलौने
मध्यप्रदेश के विंध्य का यह इलाका, प्राकृतिक सौंदर्य का एक अनूठा उदाहरण है, लेकिन रीवा की पहचान रीवा की कलाकृतियों से भी है. वैसे तो रीवा ने सफेद बाघ से विश्व भर में प्रसिद्धि हासिल की है, लेकिन कलाकृतियों की बात करें तो विश्व भर में रीवा के सुपारी के खिलौने प्रसिद्ध हैं रीवा का एक परिवार कई पीढ़ियों से यह काम करता आ रहा हैं, जो अभी भी जारी हैं.

कुंदेर परिवार पीढ़ियों से सहेजे है यह कला
रीवा में कुंदेर परिवार के द्वारा पीढ़ियों से सुपारी के खिलौने का न सिर्फ निर्माण किया जा रहा है बल्कि इस कला को महंगाई के दौर में जीवित भी रखा गया है. सुपारी के खिलौने के इतिहास का रुख करें, तो रीवा राजघराने का जिक्र करना जरूरी है. रीवा राज घराने में सबसे पहले पान में सुपारी का इस्तेमाल करने के लिए सुपारी को अलग-अलग डिजाइन से कटवाने की परम्परा शुरू हुई थी, उसके बाद सुपारी की डिजाइन बनाते बनाते सुपारी की कलाकृतियां सामने आने लगी. सुपारी को काटने के लिए राज परिवार ने सबसे पहले 1942 में भगवानदीन कुंदेर को बुलाया था.

सुपारी से पहली कृति सिंदूर की डिब्बी बनाई
महाराजा के आदेश पर राज दरबार के लिए लच्छेदार सुपारी काटी जाने लगी, उसी सुपारी को सुन्दर आकार देकर भगवानदीन कुंदेर ने सिंदूर की डिब्बी बनाई और महाराजा गुलाब सिंह को भेंट की. उस समय भगवानदीन को दरबार में लच्छेदार सुपारी काटे जाने पर राज परिवार की ओर से 51 रुपये का इनाम दिया गया था, समय के साथ बाजार की मांगों के अनुसार सुपारी की मूर्तियां बनाई जाने लगीं, तब से लेकर आज तक सुपारी की मूर्तियों और खिलौने को बनाने की जिम्मेदारी भगवानदीन कुंदेर की पीढ़ी निभा रही हैं, और यह जिम्मेदारी अब दुर्गेश कुंदर पर है.

इंदिरा गांधी भी हो गई थीं इस कला की फैन
1968 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रीवा आई थी. इस दौरान उन्हें भेंट स्वरूप सुपारी की मूर्ति दी गई. दिल्ली पहुंचने के बाद इंदिरा गांधी ने हथकरघा उद्योग को लोन देने वाले सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के पैनल में सुपारी की मूर्तियां बनाने वाले दुर्गेश कुंदेर की परदादी रमसिया कुंदेर को भी शामिल किया. इंदिरा गांधी ने कई बड़े कार्यक्रमों में उनका परिचय करवाया. इंदिरा गांधी ने सुपारी के मूर्तियों को राष्ट्रीय स्तर में पहचान दिलाने की कोशिश की.

सेलिब्रिटी को भेंट की जाती है यह अनोखी कृति
रीवा में बनाई जाने वाली सुपारी की मूर्तियां शहर में आने वाले राजनेताओं और अन्य सेलिब्रिटी को भेंट के रूप में दी जाती हैं. इस तरह यह मूर्तियां दूसरे राज्यों में भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं. रीवावासी अक्सर स्मृति के तौर पर सुपारी के खिलौने भेंट किया करते हैं. रीवा के कुंदेर परिवार ने सालों से इस कला को जीवंत रखा है. परिवार ने यह जिम्मेदारी उठाई है कि पीढ़ियों से चली आ रही परंपररा टूटने न पाए.मौजूदा समय में महंगाई के इस दौर में सुपारी की कला को संजोए रखना चुनौती जैसा लगता है, लेकिन रीवा का कुंदर परिवार इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है.

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