बालाघाट: यहां मौजूद है आल्हा ऊदल की प्राचीन मूर्ति और सोना रानी का पलंग

बालाघाट: यहां मौजूद है आल्हा ऊदल की प्राचीन मूर्ति और सोना रानी का पलंग


रिपोर्ट– चितरंजन नेरकर, बालाघाट.

बालाघाट में एक से बढ़कर एक पर्यटन स्थल है जो घने जंगलों और पहाड़ों पर मौजूद है. साथ ही यहां की प्राकृतिक सौंदर्यता देखते ही बनती है. इसी वजह से ये पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. इन्हे देखने दूर दूर से लोग यहां आते है..आज हम एक ऐसेही पर्यटन स्थल की बात कर रहे हैं जो प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण और घने जंगलों के बीच ऊंचे पहाड़ों पर मौजूद है जिसे कहवरगढ़ के नाम से भी जाना जाता है.

बालाघाट के लालबर्रा तहसील के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत रानीकुठार के एक गांव कहवरगढ़ के घने जंगलों और ऊंचे पहाड़ों के शीर्ष पर लगभग 11वीं व 12वीं शताब्दी की पत्थरों पर बनी आल्हा ऊदल की मूर्ति मौजूद है, साथ ही यहां पर सोना रानी का पलंग व हनुमान जी का प्राचीन मंदिर सहित अनेक दार्शनिक स्थल हैं. पहाड़ी के दूसरी ओर के शीर्ष पर स्थित माता रानी बोबलाई देवी, मां बम्लेश्वरी का मंदिर भी है.

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चट्टानों से ढकी सुरंग से जाकर होते हैं माता के दर्शन
यहां पर एक समिति बनाई गई है जो बोबलाई देवी संरक्षण के नाम से है. उन्ही के सदस्यों ने जानकारी देते हुए बताया कि यहां पर एक कुटिया है जिसके पास आल्हा ऊदल की मूर्ति, राधा कृष्ण, भगवान शिव की पिंडी, नंदी, भगवान विष्णु विराजित हैं. बोबलाई माता के दरबार के नीचे एक कुटिया भी है. यहां माता रानी के दरबार तक जाने के लिए पूरी तरह चट्टानों से ढकी एक सुरंग है उससे होकर जाना पड़ता है. नवरात्र के समय श्रद्धालुओं की भीड़ यहां देखते ही बनती है.

पहाड़ों की चढ़ाई से डर लगता है
आपको बता दे कि कहवरगढ़ के पहाड़ी पर सीढ़ी नही है और इसकी चढ़ाई काफी ऊंची है यहां आने वाले पर्यटक प्राकृतिक नजारों को देखकर रोमांचित तो हो जाते हैं, लेकिन इन पहाड़ों की चढ़ाई को देख कर थोड़ा डर भी जाते है. यहां पर एक बावड़ी भी है जिसमें गर्मी के मौसम में भी पानी भरा रहता है. यह माता रानी के दरबार के नीचे स्थित है.टूट फूट के बाद 2004 से इसकीदेख रेख का जिम्मा वन समिति ने उठाया.

बारिश का मौसम छोड़ सालभर आते हैं पर्यटक
समिति के सदस्य ने चर्चा में बताया कि यहां पर बारिश के मौसम को छोड़ दे तो साल भर पर्यटक आते है वही घना जंगल होने के कारण वन्य प्राणियों की भी बहुलता है ऐसे में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए है..साथ ही कहवरगढ़ में यहां के प्राकृतिक सौंदर्य और आल्हा ऊदल की मूर्ति को देखने दूर दराज से पर्यटक यहां पहुंचते हैं.

राज्य सरकार इसे संरक्षित करे- अध्यक्ष, पुरातत्व संग्रहालय
वही पुरातत्व संग्रहालय के अध्यक्ष विरेन्द्र सिंह गहरवार ने बताया कि यह काफी अच्छा स्थान है और काफी संख्या में पर्यटक इस जगह पर आते है ऐसे में राज्य सरकार को इसे संरक्षित करना चाहिए. कहवरगढ़ के जंगल में 10वीं व 11वीं शताब्दी की प्रतिमाएं हैं. जहां शारदेय व चैत्र नवरात्र में अधिक भीड़ लगती है.

Tags: Balaghat S12p15, Madhya pradesh news



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