पति की मौत के बाद विधवा नहीं होती यहां की महिलाएं, दुनियाभर में खास है ये प्रथा

पति की मौत के बाद विधवा नहीं होती यहां की महिलाएं, दुनियाभर में खास है ये प्रथा


नई दिल्ली. पति की मौत के बाद महिलाओं को जीवनभर विधवा बनकर रहना पड़ता है. पत्नी कम उम्र की हो तो कई बार दोबारा शादी हो भी जाती है. प्रौढ़ अवस्था की महिलाएं तो आजीवन वैधव्य भोगने को विवश कर दी जाती हैं. मगर देश में एक समाज ऐसा भी है, जहां पति की मौत के बाद भी महिलाएं विधवा नहीं होतीं. इस समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान, उनकी सामाजिक सुरक्षा का ख्याल रखना अनिवार्य है. महिला जवान हो या प्रौढ़ या फिर बुजुर्ग ही क्यों न हो, पति की मौत के बाद उनकी दोबारा शादी करा दी जाती है, ताकि उन्हें वैधव्य न भोगना पड़े.

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड समेत देश के अन्य राज्यों में पाई जाने वाली गोंड जनजाति के पारंपरिक रिवाज यूं तो कई हैं, लेकिन महिलाओं के पुनर्विवाह की प्रथा अनोखी है. गोंड समाज की अनूठी परंपरा है कि यहां कोई भी महिला विधवा नहीं रहती है. पति की मृत्यु के बाद उसकी शादी घर के ही किसी अन्य पुरुष से कर दी जाती हैं. इसमें उम्र कभी बाधक नहीं होता. आइए इस अनोखी परंपरा के बारे में विस्तार से जानते है.

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मध्य प्रदेश

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मध्य प्रदेश

पति की मौत के दसवें दिन फिर सुहागन
मध्य प्रदेश की गोंड जनजाति को सरसरी तौर पर भी देखिएगा, तो इस समाज में एक भी विधवा नहीं मिलेगी. दरअसल इस आदिवासी समाज की परंपरा ही कुछ ऐसी है कि पति की मौत के दसवें दिन ही महिला को दोबारा सुहागन बना दिया जाता है. उस महिला का विवाह घर के ही किसी पुरुष के साथ करा दिया जाता है. वह पुरुष संबंध में देवर हो सकता है या फिर उम्र में काफी छोटा सा बालक. महिला किसी भी सूरत में विधवा के तौर पर नहीं रह सकती.

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चांदी की चूड़ी, सुहाग का प्रतीक
गोंड समाज में महिला को विधवा न रखने की मान्यता गहरी है. जिस घर में पुरुष की मृत्यु हुई हो और अगर घर का कोई पुरुष उस महिला से शादी के लिए तैयार नहीं है या पुरुष न हो, तो महिला को पति की मृत्यु के दसवें दिन एक खास तरह की चांदी की चूड़ियां पहना दी जाती है. इसे ‘पातो’ कहा जाता है. इस चूड़ी को पहनाने के बाद महिला को सुहागन मान लिया जाता है. गोंड समाज से जुड़े लोग आज भी पूर्वजों की बनाई इस परंपरा का पालन करते हैं.

Tags: Tribal cultural, Tribes of India



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