छत्तीसगढ़ी में पढ़ें : मितान के चिन्हारी

छत्तीसगढ़ी में पढ़ें : मितान के चिन्हारी


संगे-संग पढ़े-लिखे, बढ़े अउ एके जघा काम करे संगवारी घर एक घौं जाना परगे. सोचे रेहेंव नइजातेंव, फेर अइसे कभू-कभू अलकरहा काम-बूता आ जथे ते जाय ले पर जथे. ए तो अपन-अपन भाग हे के कोनो कृष्ण असन राजा बन जथे, चारों ओर ओकर नांव, गुनगान अउ शोर होय ले धर लेथे, अउ कोनो सुदामा असन दीन-हीन फकीर कस जिनगी गुजारे बर मजबूर हो जथे.

ओ फकीर के आज सुरता आवत हे जउन कभू गांव मं खंजेरी बजावत ये दे भजन ल गावत मांगत फिरत रिहिसे- ‘किसमत के खेल निराले मोर भइया…. वाजिब मं किसमत सबो के एक समान नइ होवय, तभे तो कोनो राजा त कोनो भिखारी बन जथे. सुदामा का होगे कृष्ण के संग पढ़े रिहिसे फेर ओकर अलग ठाट-बाट के रिहिसे. विद्यार्थी जीवन मं सब एक बरोबर होथे, एकर मतलब ये तो नइ होवय के जिनगी भर समान ककरो जीवन हो जाय. एक झन राजा बनगे, अउ दूसर भिखारी, गरीब.

कथा-कहानी मं बताथें, दूनो बचपन के संगवारी रिहिन हे, मितान बदे रिहिन हे. ये बात ल सुदामा के गोसइन जानत रिहिसे. एक दिन सुदामा ल ओहर कहिथे- कस हो, तुंहर संगवारी मथुरा के राजा हे कहिके सुने हौं, जातेन का एकाध घौं. अइसने गरीबी अउ फटेहाल जिनगी कतेक दिन ले जीयत रहिबो. सुदामा भड़कगे अउ कहिथे- कइसे कहिथस लेडग़ी, मितान करा मैं मांगे ले जाहौं, ओकर करा जाके मोर गरीबी के मजाक उड़ाहौं. काहत, बोलत अउ चिरौरी करत मं गिस अउ तहां ले लहुटित तब खाली हाथ ‘रस्दा मं आवत मने-मन सोचथे अउ बम्हनीन ल गारी देवत कहिथे- नइ जांव काहत रेहेंव तभो ले बरपेली भेज दिस, का हासिल अइस, दू ठन रुपया घला नइ दिस, ये ले मितान लइका मन बर खाई-खजेना ले लेबे. तभे तो सियान मन केहे हे- डउकी के बात मानही, ओकर बुध मं जउन चलही तउन ठेंगवा चाट के जाही, तउन सिरतोन हे.

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बात लमियागे, जउन बात ल केहे ले धरे रेहेंव तउन मितानी अउ संगवारी ऊपर हे. एके संग पढ़े-लिखे, खेले-कूदे अउ एके जघा काम करे ले कांही नइ होवय. समे आघू चलके अपन गुन अउ बेवहार ल बता देथे. रस्दा धरा देथे अउ समझा देथे के तैं कोन हस, अउ मैं कोन हौं. अपन किस्मत मं कोनो कलेक्टर बन जथे, तब कोनो चपरासी. दरजा अलग-अलग हो जथे, बात बेवहार, चाल-चलन, गुन, सुभाव सब अलगे हो जथे. इहां कोनो बराबरी के गिनती नइ होवय.

हां, तब बात अइसन हे. जुन्ना संगवारी जान के ओकर करा मिल ले जा परेंव. बड़ेक जान अपार्टमेंट, शानदार बंगला अउ घर-दुआर. पहली कभू किराया के घर मं राहत रिहिसे, समे एक समान थोरे होथे. धुर्रा घला उड़ाके गगनचुम्बी मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारा के मिनार ल छुअत ओमा अपन जघा बना लेथे. सुदामा जइसे मथुरा मं जाके कृष्ण के महल ला देख के अकचकागे, महूं ओ संगवारी के घर ला देख के लजागेंव अउ सोचेंव- कइसे एकर डेहरी मं चढ़ौं.

अतका जरूर हे, ओहर आदर अउ सनमान करिस, जब ओकर दुआरी मं पहुंचेव तब कब के बिछड़े राम-भरत असन परेम से गला मिलिस, अउ हाथ जोड़ के दुआ, सलाम करिस. अच्छा लगिस, ओकर ये बेवहार ला देखक के. जुन्ना दिन के सुरता करत सबो हाल-चाल पूछिस. फेर राजा के दरबार मं भिखारी के का इज्जत. अपन डाहर ले ओहर चाय-पानी बर पूछिस फेर हमीं इनकार कर देन.

मन ए तीर खटकिस, जउन संगवारी चालीस-पैंतालिस साल बाद ओकर दुआरी मं पहुंचे हे- ओला का पूछे ल लागही चाय-पानी नाश्ता बर? अपन होके कइसे कइही ओहर के हां भई दे लान दे? लाज शरम के मारे ओहर नहीं कहिबे करही? दुबारा फेर नइ पूछिस न जोजियाइस. एती-ओती के बात करेन तहां ले चलथन कइके हाथ जोर के ओकर घर ले बिदा लेन. रस्दा मं लहुटत बेरा उसी सुदामा असन मन में संकलप चले ले धर लिस, जतका बड़े होथे तउन मन अइसने होथे का? मन ल दबकारेंव, झन सोच, संकलप कर-रे चंडाल, ओहर मोर बचपन के संगवारी हे. अरे आदर से हाथ मिलालिस, गला मिलिस ये कोनो कम बात हे का? एक कप चाय-पानी अउ नाश्ता बर तोर जीव छूटत हे? उलटा के मन हा कहिथे- तोर घर कोनो आथे तब कइसे कोनो ला चाय-पानी बिगर जान नइ देस? ओला समझायेंव- अरे छोड़ बुतकतरू, बहुत जबान चलाथस. मोर तेवर ल देखके उहू हा कलेचुप होगे.

(डिसक्लेमर – ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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