कूनो पालपुर अभयारण्य : चीतों के स्वागत में अपना घर छोड़ देना चाहते हैं 128 परिवार, जानिए क्या है वजह

कूनो पालपुर अभयारण्य : चीतों के स्वागत में अपना घर छोड़ देना चाहते हैं 128 परिवार, जानिए क्या है वजह


श्योपुर. 17 जनवरी को राष्ट्रीय कूनो अभयारण्य में चीता परियोजना को शुरू हुए 4 महीने पूरे हो जाएंगे. अब इसी महीने कूनो में दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते लाए जाने की तैयारी है. लेकिन कूनों के जंगल में बसे बागचा गांव को अभी तक दूसरी जगह नहीं बसाया गया. इससे इस गांव में रह रहे ग्रामीणों को जंगली जानवरों का खतरा सता रहा है. वनकर्मी भी ग्रामीणों को गांव से बाहर आते-जाते समय रोकते- टोकते हैं. इससे भी ग्रामीण परेशान हैं. उनकी मांग है कि, उन्हें जल्द अच्छी जगह पर विस्थापित किया जाए.

जिला मुख्यालय श्योपुर से करीब 85 किलोमीटर दूर बागचा गांव राष्ट्रीय कूनों अभ्यारण के जंगल के अंदर बसा हुआ गांव है. पुरानी जनगणना के अनुसार गांव की कुल आबादी 556 है. इस गांव में 128 परिवार रहते हैं. ग्रामीण 4993 हेक्टेयर भूमि पर खेती करते हैं. गांव और खेत चारों ओर से कूनों के जंगल से घिरे हुए हैं. चीता परियोजना के शुभारंभ के बाद अब इस गांव तक पहुंचने वाले रास्तों पर वन विभाग ने नाकाबंदी कर दी है. इस वजह से बागचा गांव तक पहुंचने के लिए वन विभाग के अधिकारियों से अनुमति लेना जरूरी है. इससे ग्रामीणों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा ग्रामीणों को जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है.

गांव में और खेतों में जंगली जानवरों के घुसने की दहशत
ग्रामीण सबसे ज्यादा चीतों से डरे हुए हैं. उन्हें डर है कि बाड़े से जब चीते छोड़े जाएंगे तो वह उनके गांव में और खेतों में भी घुस जाएंगे. इसलिए वे मांग कर रहे हैं कि उन्हे जल्द से जल्द यहां से दूसरी जगह बसाया जाए. जंगल में बसे बागचा गांव तक पहुंचने के लिए करीब 25 किलोमीटर लंबी मोरम मिट्टी रोड है. जो सिरोनी गांव के पास गोरस-श्यामपुर हाईवे पर जाकर मिलती है. इस रास्ते पर ग्रामीणों को आए दिन तेंदुआ, भालू, लकड़बग्घा और अन्य हिंसक जंगली जीव मिल जाते हैं. इसके अलावा उनके खेतों पर भी हिंसक जानवरों का खतरा मंडराने लगा है.

पुनर्वास की मांग 
गांव वालों की मांग है कि खेतों से फसल कटते ही उन्हें दूसरी जगह बसा दिया जाए. ग्रामीणों का डर भी जायज है क्योंकि राष्ट्रीय कूनो अभ्यारण के जंगल में ना सिर्फ चीते बल्कि, 150 के करीब तेंदुए, भालू और लकड़बग्घा जैसे हिंसक वन्यजीव भी जंगल में मौजूद हैं. जो आए दिन इस गांव के आस-पास ही नजर आते हैं. जंगली जानवरों के अलावा ग्रामीण बिजली और पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. ग्रामीणों की मानें तो गांव में पानी के लिए एक भी हैंडपंप नहीं है. गांव में लगा ट्रांसफार्मर 5 दिन पहले खराब हो गया है, इस वजह से खेतों पर लगे ट्यूबवेल भी नहीं चल पा रहे हैं. इन हालातों में उन्हें 4 से 5 किलोमीटर दूर पैदल चलकर पीने का पानी लाना पड़ रहा है. ग्रामीणों की मांग है कि बिजली और पानी की समस्या का तत्काल निराकरण किया जाए.

वन विभाग करता है आने-जाने में रोक-टोक
बागचा गांव के लोगों के पास रोजगार के नाम पर थोड़ी बहुत खेतीबाड़ी है. इसके अलावा अब तक वह जंगल से चीड़, गौंद और अन्य जड़ी बूटी लाकर उसे शहर में बेचकर अपनी आजीविका चलाते रहे हैं, लेकिन चीता परियोजना शुरू होने के बाद वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी उन्हें जंगल में आने से रोक रहे हैं. राष्ट्रीय कूनो अभयारण्य के डीएफओ प्रकाश वर्मा का कहना है बागचा गांव के ग्रामीणों को जल्द ही विस्थापित कर दिया जाएगा. इसकी प्रोसेस चल रही है, रही बात रोकने-टोकने की तो वह पूरा एरिया बफर जोन में आता है. बाहरी लोगों को आने-जाने के लिए अनुमति लेने की जरूरत है. ग्रामीणों को रोका टोका नहीं जा रहा.

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