कल्चुरी राजा कर्ण की कुल देवी को लगता है कुंदे की मिठाई का भोग, जानिए कैसे बनती है यह मिठाई

कल्चुरी राजा कर्ण की कुल देवी को लगता है कुंदे की मिठाई का भोग, जानिए कैसे बनती है यह मिठाई


जबलपुर. आज हम आपको बेहद खूबसूरत और राजा कर्ण के कुल देवी त्रिपुर सुंदरी मंदिर में विराजित माता का दर्शन कराएंगे और माता के प्रताप के बारे में जानेंगे. साथ ही सबसे अहम बात आपको बताएं राजा कर्ण की कुलदेवी को कुंदे की मिठाई का भोग लगाया जाता है, आखिर कुंदे की मिठाई क्या है इसके बारे में भी जानेंगे. आपको बताएं माता के दरबार में कुंदे की मिठाई का भोग जरूर लगता है, दरअसल कुंदे की मिठाई सामान्य मिठाई के जैसे ही बस इसके बनाने की प्रक्रिया अलग है और इसका नाम कुंदे की मिठाई है.

कैसे बनती है कुंदे की मिठाई
कुंदे की मिठाई बेचने वाले दुकानदारों की माने तो कुंदे की मिठाई को खोए से बनाया जाता है लेकिन खास बात यह है की खोया को काफी देर तक भूनकर उसमे शक्कर उसी मात्रा में डालकर मिला दिया जाता है और उसके बाद भी काफी देर भूनने के बाद उसकी मिठाई बनाई जाती है. और अहम बात यह है की इसमें शक्कर का भूरा डाला जाता है.

शहर से लगभग 14 किमी की दूरी पर स्थित है त्रिपुर सुंदरी मंदिर
आपको बताएं यह मंदिर राजा कर्ण की कुल देवी का है त्रिपुर सुंदरी मंदिर शहरी केंद्र से लगभग 13 से 15 किमी की दूरी पर तेवर गांव में स्थित है साथ ही आपको बता दें की यह मंदिर भेड़ाघाट रोड पर हथियागढ़ नामक स्थान पर स्थित है. गौर करने की बात यह है की यह मंदिर 11वीं सदी में कल्चुरी राजा कर्णदेव ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. और कहा जाता है की राजा कर्ण की यह कुलदेवी थीं यहाँ पर एक शिलालेख है, जिससे इसकी पुष्टि होती है. माता के दर्शन के लिए वैसे तो साल भर भक्तों की भीड़ रहती है लेकिन नवरात्रि में यहां की रौनक देखते ही बनती है.

अवतरित हुई थी प्रतिमा
मान्यता है कि मंदिर में स्थापित माता की मूर्ति भूमि से अवतरित हुई थी. आपको बता दें यह माता की मूर्ति मात्र एक शिलाखंड के सहारे पश्चिम दिशा की ओर मुंह की हुई अधलेटी अवस्था में मौजूद है. मंदिर में महाकाली, माता महालक्षमी और माता सरस्वती की विशाल मूर्तियां भी स्थापित हैं.

त्रिपुर सुंदरी का क्या है मतलब
त्रिपुर शब्द का अर्थ तीन शहरों के समूह से है तो वहीं सुंदरी का अर्थ मनमोहक महिला से है अतः इसी कारण माता के इस स्थान को तीन शहरों की अति सुंदर देवियों का वास कहा जाता है. आपको यह भी बताएं कि यहाँ शक्ति के रूप में तीन माताओं की मूर्ति विराजित हैं, इसलिए मंदिर के नाम को उन देवियों की शक्ति और सामर्थ्य का प्रतीक माना गया है.

दर्शन मात्र से मनोकामना होती है पूर्ण
इस मंदिर की मान्यता है की दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है, आपको बता दें मंदिर परिसर में नारियल को चुनरी में बांध कर मंदिर परिसर में बांधने से भी मनोकामना पूर्ति की बात भी कही जाती है इसी कारण मंदिर परिसर मेंअकूत नारियल बंधे हुए नजर आते हैं.

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FIRST PUBLISHED : December 28, 2022, 21:47 IST



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